खुद घुट रही हूँ

ख़ुद घुट रही हूं या मन घुट रहा हैं
कुछ तो हैं जो मन में बिखर रहा हैं

दफ़न हो चुकी है बेचैनी भी मन में
दर्द अब होले होले सिसकियाँ ले रहा हैं

खता ना तेरी थी ना मेरी थी
क्या फ़र्क पड़ता भानु जमाना अब क्या कह रहा हैं

इस तरह साथ से क्या फ़र्क पड़ता हैं
इतने तारों के बीच भी चाँद अकेला पड़ रहा हैं

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