समझ से परे है मेरी समझ
उलझी हूं कहां यह ना मुझको खबर
खुद का खुद से द्वंद चल रहा
मन क्यों मेरा मौन चल रहा
चली जा रही किस डगर पर अब मैं
क्यों ना मुझे भगवान मिल रहा
सब लूटने पर बेचैनी क्यों है
मन ख़ाक हैं क्यों न ख़ाक मिल रहा
तप्त ताप मन अब पिघल रहा
ज्वालामुखी सा दंश दे रहा
छा रही हैं चहु और अंधियारी
भानु को ना सूर्य मिल रहा
शीतलता की खोज में 'भानु'
मन मेरा दर दर फिर रहा।
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