लड़ रही हूँ मैं
ख़ुद से खुद को बदल रही हूँ मैं
तेरी ख़ातिर ही तो सब से लड़ रही हूँ मैं
नादानियां अब कम कर रही हूँ मैं
अपनी उम्र से बड़ी बन रही हूँ मैं
दुनियां के साथ रहकर भी
खुद को अलग कर रही हूँ मैं
नन्नी बूंद सी मिली है ये जिंदगी
सागर सी यादों को समेटे जा रही हूँ मैं
मुझमें कैद है कही तेरी तस्बीर
आईने में देख बस जिये जा रही हूँ मैं
आज सच कहूँ परेशान हूँ बेंतीहा
तेरी गुरुर के ख़ातिर सब सहे जा रही हूँ मैं
भानुजा शर्मा
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