"कौ पूछूं बिन द्वारण की"

कौ पूछूँ बिन द्वारण की,चंद्र लगे किवाड़न की
रज ना ही तहाँ,बिखरत मोती खदानन की
एक लता तहाँ पुष्प बहुरंगे, ऋतु प्यारी मन भावन की
देखी ना कहूं महल अटारी,कुँज लगे मणि माणिक की।

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