वृषभानु नंदनी

वृषभानु नंदिनी सिंहासन राजत हैं
गुरुदेव प्यारे वीणा सुनावत है

 जब मुस्कावत वारी किशोरी
 गुरुदेव नैनन नीर वहावत है

पंचम स्वर बोलत कोकिला
 प्यारी साज कहा जग के भावत हैं

सुन किशोरी मुख नाम गुरुवर को 
प्रेम कहां या हिये समावत है

वीणा सुन गुरुवर की कान्हा
प्यारो घुटुवन 2 आवत हैं

गुरुदेव हाथन दूध आरोहत हैं
 निधिवन संग प्यारी पावत हैं

अमृत प्रसादी गुरुदेव पान कर
महामृत भानुजा भाग आवत हैं

गुरुदेव कृपा सो मन आनंद ना समावत है
वृषभानु नंदिनी प्रियतम संग राजत है

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