मन मंदिर
मेघा से मल्हार हैं सीखी
पेड़ों से श्रृंगार।
कैसे करूं अब जग से बातें
जब तुम से की हैं बात।।
देखा है मैंने रंग सांवरा
और स्वर्ण की लाली।
क्या देखूं अब रंग जगत के
भानु ये कैसी प्रीति पाली।।
सोहनी लगाती मन मंदिर में
चरण रज शीश चढ़ाती।
क्या गाऊं गुनगान जगत का
अब तेरे ही गुण गाती।।
Bahut hi Sundar
ReplyDeleteWaah
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