मंजिल
चल रही हूं मंजिल पर
फिर भी मन उदास हैं
लगता हैं लगी सुख की प्यास हैं
दिन रात का नही हैं होश मुझें
फिर क्यों ये जिंदगी नाराज हैं
लगती हैं तुम बिन जिंदगी सुना साज हैं
छोटी छोटी बूदों से
सींचा सुख के सागर को
क्यों मुझें अब बूदों की तलाश हैं
चल रही हूं मंजिल पर
फिर भी मन उदास हैं
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