पतझड़
इस तपती धूप में तेरा इंतजार करती हूं
तू जानता हैं तुझसे मोहब्बत बेहिसाब करती हूं।
क्यों करता हैं तू अक्सर गैरों से बातें
तेरा इंतजार दिन रात करती हूं।।
कह कर गए थे उस पल जल्दी लौट के आऊंगा
बरसों से उस पल का इंतजार मैं करती हूँ।
इस तपन भरे मौसम में मेरे लिए बादल सा हैं तू
मैं बिन मौसम जैसे बादल का इंतजार करती हूं।।
बिन तेरे पतझड़ मौसम सा हैं ये जीवन
फिर भी जेठ में भानु सावन की आस करती हूं।
मेरे छोटे से गुलशन का सदाबहार हैं तू
तू नहीं है फिर भी तेरी तलाश करती हूं।।
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