"जेठ की दुपहरी"

        "जेठ  दुपहरी"


जेठ की दुपहरी तुम
सावन की मैं हवा
तपती गर्मी में
मैं शीतल फुहार हूं।

सूर्य तुम मै धरा
तपती हूँ मैं सदा
फिर भी शीतलता का
मैं अभिमान हूं।

खाली तुम  बादल
मैं लहराती घटा
तेरे टकरार  से
मैं बह जाती हूं।

तू हैं समुंद्र भारी
मैं हूं नदी बेचारी
तुझ में मिलकर
ख़ुद को भूल जाती हूं

छोटी मैं फुलवारी 
तुम तो वृक्ष भारी
तेरे आगे भानू
मैं झुक जाती हूं।

भानुजा शर्मा

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