चरणामृत

 यमुना के तट पर कान्हा
 आज मुरली बाजवत हैं।
 सुन मुरली की धुन राधे
 कुंजन में बेसुध भागत हैं।।

सूझत नटखट को नटखटपन
 लाला किशोरी को सतावत हैं।
  राधा राधा पुकारत बंसी सो...
 श्याम सम्मुख ना आवत हैं।।

जावन लगी निजकुंज किशोरी
कान्हा तब भाग के आवत हैं।
 छलिया अपनी सुध बुध भूलो
 जब किशोरी मंद मुस्कावत हैं।।

बैठे कुल पर युगल आज
भानुजा चरणन पखारत हैं।
लेत चरणामृत कृष्ण राधे को
तब अखियां सो नीर बहावत हैं

 निरखे सबरी संग सहेली
 वृषभानु दुलारी सकुचावत हैं।
 आये चरणामृत लियो गोपीजन
  शुकदेव युगल दर्शन को आवत हैं।।




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