" नदी बोली समंदर से"
नदी बोली समंदर से मैं तेरे पास आई हूं
मै तेरे लिए ही बाबुल का घर छोड़ आई हूँ।
आसमाँ के साये में...
चाँदनी के आँचल में...
गहने आज चाँद तारो
के पहन आई हूँ
कहीं टूटी कहीं फटी
राहों से मैं गुजरी हूँ
तेरे ही लिए मैं....
हर दर्द भूल आई हूँ।
मैं आ मिली तुझ से
खुद को भी भूल कर
अब तू मेरा जीवन.....
मैं तेरी ही परछाई हूँ
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