हरी-भरी खुशहाल धरती पर आज विपदा की घड़ी भारी है चारों ओर आज लाशे .... और घर मे बैठी दुनिया सारी है। सुला देते हैं हम भूखे बच्चों को... फरमाइश वो भोजन की करते हैं तपते हैं दिन भर धूप में.. वो ए. सी में बैठे रहते हैं।। वो चलते हैं कारों से.. हम पैदल सफर तय करते हैं उठाता है बोझ मेरे घर का छोटा बच्चा भी उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। इतनी बड़ी इस महामारी में... परीक्षा वो करवाएंगे चाहे मर जाए दुनिया सारी पर पपेर वो लिखवाएगे। बहुत हुआ ये अंधा शासन.. कब अंधकार मिटायेंगे। आस लगाए बैठी भानु रामराज कब आएंगे।। भानुजा शर्मा
अब की आन मिलो सजना तुम बिन सुनो मोरो फ़ागुन असूअन भीगें अंगना। देखत अखियां एक ही सपना अबके फ़ागुन संग मेरे सजना सग छोड़ मैं भीगूँ ,पी संग अंगना। सांची कहू अली हुरदंग ना सुहावे होरी के रंग मन ना भावे बाँट निहारत तोरी सजनी, जाये कहो ये पी के अंगना प्यारे'भान अली' की तनिक तो सोचो कब आओगे पाती लिख भेजों कैसे रहू श्यामा अब तुम बिन अंगना
सोचा ना था ऐसा भी दिन आयेगा सामने बैठा होगा वो मेरे... पर वो ना मुस्कुराएगा। मेरा दर्द मेरी बेबसी एक दिन ख़ामोशी में उतर जायेगी ज़माने के आगे हँस दूंगी खिलखिला कर... ये दर्द रात के अंधेरे में आंखों से निकल जाएगा करने को बातें बहुत होंगी मुझ पर पर ये मन ख़ामोश ...रहना चाहेगा कुरेदें जायेगे दफ़न किये क़िस्से भी..सच कहती हूं तू बेन्तिहा याद आयेगा। सोचा ना था कि वो इतना बदल जाएगा खुद की खामियां भी मेरे सर इस तरह डाल जाएगा तू खुश रहे... मान ली ख़ताये मेरी है सुन खुदगर्ज अब तेरे पास कभी ना आया जाएगा उसकी हरकतों से पत्थर हो चुकी होंगी मैं भी फिर चाहें रो कर ही सही मुझें कितना भी पिघलायेगा। टूट भले ही जाऊंगी... यह मन अब मॉम न बन पाएगा। भानुजा✍️
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