लिख ना पाती हूँ
" लिख ना पाती हूँ"
खुद व्यथित हो जाती हूं।
देख अपनों की वेदनाएं
मैं अनवरत मर जाती हूं
शान्ति गीत का पाठ पढ़ाने वाले
अशान्ति दूत जब बन जाते है
दूध से निर्मल रिश्तों को वो
अक्सर खट्टा कर जाते है
मौन ही मौन कब तक रहे हम
अधिक झुकने वाले आसन बन जाते हैं
सदैव अमृत बनने वाले भी अब
बिष का प्याला बन जाते हैं।
भोर सांझ तक सब भानु देखें
खुद में सिमट कर रह जाती हूं
करना बहुत कुछ चाहू फिर भी
कुछ ना मैं कर पाती हूँ।
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