'मंगल गीत'
बृषभान के अंगना बजत बधाई देखो री कीरत जा ने लाली जाई घर घर मंगल ब्रज में बजत बधाई वृषभान द्वार सब हिल मिल आई। गावत मंगल बैठ पोरी में और झूमत गावत हैं सारी बाबा लुटावत सर्वस अपनों कीरत जू झुलावत राधा गोरी। ब्रज में उत्सब आज मनो हैं लाली ने आज जन्म लिया है नेत्र ना खोलें राधा प्यारी श्याम कु निरखन चाहे प्यारी छठी महोत्सव को दिन आयो नंद बाबा संग लाला आयो किशोरी के पलना में पोधायो स्पर्श पाय किशोरी नेत्र है खोले नैनों से नैनों की भाषा बोले इतने में आए ढाढ़ी ढाढ़ीन युगल को देख खूब हरषाये मन ही मन में लाड लड़ाये नख शिख ढाढ़ीन पेहरावो द्वार बाबा तुमरे मंगल गायो घड़ी आज उत्सब की हैं भारी 'भान' ने भानुजा को दर्शन पायो