"कुछ इस तरह बिखरने लगे"

आंसू भी झर झर कर बरसने है लगे
जिंदगी के साज कुछ इस तरह बिखरे लगे ।

मरहम लगाने वाले भी अब तो जख्म देने में है लगे
जिंदगी के पन्ने कुछ इस तरह कोरे रहने हैं लगे।

नही होता यकीन अब खुद की ख़ुशियों पर....
कुछ इस तरह दर्द दिलों मे बसने है लगे।

नही भाता अपनों का साथ ना जमाने की भीड़ हमे.....
इस तरह हम कुछ तन्हा तन्हा रहने हैं लगे।

बक्त करने लगे बर्बाद उलझनों को सुलझाने में हम.....
तो पता लगा 'भानु' उतना ही इन उलझनों में फसने हैं लगे!

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