इस घोर अंधेरे में बस एक आश हैं वो चाँद आज अकेला नही एक धुँधला सा तारा पास हैं इन पेड़ों के झुरमुटों में छुपा हो सारंग जैसे कुछ अधूरी अरमान लेकर चंद्रप्रभा बिखरी आज हैं
"सोचते थे" सोचते थे कि तुम हमारे ही हो इस खातिर कभी पूछा ही नहीं देख कर गैरों की बाहों में हम हम चुप थे जैसे देखा ही नहीं बरसते रहे रात भर दो नैना सिसकियां मेरी मैंने सुनी ही नहीं कर दिए थे जो तुमने झूठे वादे कभी मैंने सच मानकर कुछ कहा ही नहीं छोड़ दी थी जो जग से आश कभी तुमसे कि पर 'भानु' मैंने कहा ही नहीं हो मधुकर तुम सब कहते थे ये एक कली पर दिल लगा ही नही भानुजा शर्मा