शीत की विदाई और बंसत की बधाई छोड़ी सोर रजाई,रंगभरी होरी मन भाई है आयो बसंत को त्यौहार लायो रंग की बहार पीली सरसों,पीली केसर देख मन भाई हैं देख आज भीगी धरा शौर्यगाथा मन मे उमड़ आई हैं वृंदा की ओर से स्वतन्त्र बसंत की ख़ूब खूब बधाई हैं
श्याम पिया मोसे करो ना तुम बरजोर अभई तो फागुन आये लगो हैं अभई रहे बहुत दिन और श्याम पिया मोसे करो ना तुम बरजोर भीगती भागती घर मैं जाऊँ प्यारे टोकत है सब लोग कभऊँ खोबत पाव की पायल कबहू बंधत गठ जोड़ बेरी फागुन आये लगो है कर ले मन की और..... बैठी हूँ रंग में रँगबे कु छोड़ मैं जग की ठौर
आओ गोविंद प्यारा आओ जी म्हे पकडूंला चरखी थे तो पतंग उड़ाओ जी पतंग उड़ाओ जी प्यारा पेच लड़ाओ जी आओ गोविंद प्यारा आओ जी चंद्र महल का डागडा से देखो राधा रानी सखियों के संग पतंग उड़ाए कर कर खींचातानी थे तो पचरंगी लहराओ जी, म्हे पकडुंला चरखी थे तो पतंग उड़ाओ जी... लाल गुलाबी नीली पीली चमकीली और भूरी राधा जी की सबसे ऊंची वो देखो अंगूरी आओ गोविंद प्यारा आओ जी मैं पकडूंला चरखी थे तो पतंग उड़ाओ जी