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"इन के सिवा"

आज मैंने इन कोरे कागज के पन्नों से पूछा- क्या लिखूं आज तुम पर-अपना दर्द,गम या तन्हाई..... तो पन्ने भी मुस्करा कर बोले 'भानु'और हैं भी क्या तेरे पास इन के सिवा।

"कुछ इस तरह बिखरने लगे"

आंसू भी झर झर कर बरसने है लगे जिंदगी के साज कुछ इस तरह बिखरे लगे । मरहम लगाने वाले भी अब तो जख्म देने में है लगे जिंदगी के पन्ने कुछ इस तरह कोरे रहने हैं लगे। नही होता यकीन अब खुद की ख़ुशियों पर.... कुछ इस तरह दर्द दिलों मे बसने है लगे। नही भाता अपनों का साथ ना जमाने की भीड़ हमे..... इस तरह हम कुछ तन्हा तन्हा रहने हैं लगे। बक्त करने लगे बर्बाद उलझनों को सुलझाने में हम..... तो पता लगा 'भानु' उतना ही इन उलझनों में फसने हैं लगे!

"तेरी यादें"

कौन कहता है तेरा दिया कुछ नही मेरे पास.......😢 खुद को जब भी आईने में देखती हूं तुझे पाती हूँ। कौन कहता है 'भानु' वो दूर है हमसे..... आज भी बहुत करीब रहते हैं अपनी यादों के साथ ।

"एक यार बना बैठे"

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एक जुर्म हुआ है हमसे एक यार बना बैठे है कुछ अपना उन्हें समझकर सब राज बता बैठे हैं फिर उन प्यार की राहों में दिल ओर जान जावा बैठे है वो याद बहुत आते हैं 'भानु' जो हमको भुला बैठे है भानुजा शर्मा