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शायरी

कितना भी मान रख लो जमाने में किसी का वो अपमान पर उतरता जरूर हैं। यदि आईना मन दिखलाता तो कुछ लोग कभी सामने ना आते। तेरी एक मुस्कुराहट पर खुशियां लुटाई है मैंने और तुम कहते हो खोया क्या है। इस समझदारी की दुनिया में उसने समझ के रिश्ते खेले हैं जीते जो उसके...... जो सब हारे वो मेरे हैं। नशा प्रेम का हो या पैसे का उतरता जरूर है मन नही होता जमाने से गुफ़्तगू का तेरी निगाहों से बड़ा मसला सुलझा हैं भार ही लगती हैं दुनियां की वो बातें सभी  जिनमें तू शामिल ना हो। तू जब साथ हो तो मुझें.... रेगिस्तान में भी बंसत लगती हैं

दर्द देने लगा हैं

वो भी अब हंसकर के मजा लेने लगा है  जो दर्द समझता था वो भी दर्द देने लगा है फर्क नहीं पड़ता उसको मेरे हालातो से मेरे पीठ पीछे अब वो कही और गुफ़्तगू करने लगा है नहीं छूटा एक भी रोज मरजा का काम उसका यहाँ तो जीवन मेरा बिखरा बिखरा रहने लगा हैं फर्क नहीं पड़ता अब उसको मेरे रोने से सुना हैं वो खिलखिला कर हँसने लगा है। मुझे वहम मैं रखने को परेशान हूं यह कहता हैं अक़्सर वो अपनी प्रेमिका के संग अब शहर मे घूमने लगा हैं .

मन मेरा

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इस नदिया से जीवन में ये जो समुद्र से ज्वार भाटे आते हैं ना अब उनसे नहीं घबराती मैं भरोसा है किनारे पर हाथ थामे तू जो खड़ा है मेरा। खुश हूं सुकून से हूं सबके आगे यह दिखा देता हूं नही रोक पाती खुद को तेरे आगे रोने से  जानती हूं इस मतलबी दुनियां में तू ही तो हैं मेरा। जो कहते हैं बेज्जत,बेआबरू खड़ा कर देंगे सड़क पर लाकर मुझको वो शायद भूल जाते हैं भाई कौन हैं मेरा ऐसा नहीं है की तकलीफ नहीं होती मुझे या मन नहीं घबराते मेरा या याद नही आती उसकी इस जमाने के आगे  ऊपर से नारियल सा सख्त भीतर जल में किलोल ऐसा बन गया हैं मन मेरा। कर लू खुद को अनंत सा मोन जहाँ ना पहुंच पाए जमाने की सोच मुझ तक। नाम से शीतलता झलकती हैं मेरे पर अब मन आईना नहीं हैं मेरा। ✍️