शायरी
कितना भी मान रख लो जमाने में किसी का वो अपमान पर उतरता जरूर हैं। यदि आईना मन दिखलाता तो कुछ लोग कभी सामने ना आते। तेरी एक मुस्कुराहट पर खुशियां लुटाई है मैंने और तुम कहते हो खोया क्या है। इस समझदारी की दुनिया में उसने समझ के रिश्ते खेले हैं जीते जो उसके...... जो सब हारे वो मेरे हैं। नशा प्रेम का हो या पैसे का उतरता जरूर है मन नही होता जमाने से गुफ़्तगू का तेरी निगाहों से बड़ा मसला सुलझा हैं भार ही लगती हैं दुनियां की वो बातें सभी जिनमें तू शामिल ना हो। तू जब साथ हो तो मुझें.... रेगिस्तान में भी बंसत लगती हैं