कुछ बचा नही
अरसों से कुछ लिखा नहीं शायद अब कुछ बचा नहीं आते हैं यादों के बादल घिर के आखों से कुछ जल गिरा नही थामा तब हाथ जो मेरा इस मसले में कुछ कहा नही लाई थी कोरे पन्ने चुन चुन कर खत लिखूंगी.. पर लिखा नहीं पूजूंगी अब उस चौखट को जहां कभी तू गया नहीँ। हर श्रृंगार किया अब मैने दर्पण में पर तू दिखा नहीं सोचा था मस्त रहूँगी मन में भानु ये मन भी मेरा रहा नहीं। भानुजा❤️✍️✍️