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''मेरो मदन मोहन''     देखे ठाकुर लाख मगर कोई और ना मन मेरे भाए ये मदन मोहन मेरे मन बसों तो दूजो कौन सुहाए ऐसो का कर डालो तूने कोई और पे निगाह ना जाए तेरी एक झलक से मदना मेरो रोम रोम खिल जाए या मतवाले की छवि भली जो मन को चैन चुराए नैनन से देखू नैनन कु तो मुस्कनते मोहे रिझाये ये नजर तोपे अटकी मोहन कहि और बहक ना जाए इन्हें कैद कर रखियो प्यारे कहि और भटक ना पाए चरणन ऐसो राज छुपो जो जाने सो फल पाए जो नित करे दर्शन तेरे अब बापे रहयो ना जाये छप्पनभोग नित पायो याने जो याके मन कु भाए अष्ट पहर की झांकी नित नव भोग खावे और खवाए धन्य करौली नगरी जो याके दर्शन को सुख पाए बैठ सिंघासन मदनमोहन 'वृन्दा' पर कृपा बरसाए वृन्दा शर्मा(बिट्टु) करौली(राजस्थान)